वैदिक काल से ही यज्ञों का आयोजन होता आ रहा है। अखंड यज्ञ भी उसी का विस्तार है। एक धार्मिक और सामाजिक उपाय है, जिसका आयोजन सनातन धर्म में विशेष तिथियों पर किया जाता है। अखंड यज्ञ में एक विशेष समयावधि तक अविराम मन्त्रों का जाप करते हुए आहूति की जाती है। अखंड यज्ञ का आयोजन का उद्देश्य सामाजिक धार्मिक या व्यक्तिगत भी हो सकता है। सदैव से इसका उद्देश्य आध्यात्मिक साधना और ज्ञान को बढ़ाना रहा है।
प्राचीन काल में वैदिक नियमानुसार उपासना करने वाले अग्निहोत्री अपने यहाँ अखंड अग्नि प्रज्वलित रखते थे। यज्ञ उपासक यह सुनिश्चित करते थे की अग्नि का क्रम खंडित ना हो। माताएं जिस प्रकार खिला पिलाकर अपने पुत्रों को पुष्ट रखती है उसी प्रकार यज्ञ उपासक यज्ञ कुंड में स्थापित अग्निदेव को घी, मिष्ठान्न हविष्यान्न , नाना प्रकार की औषधियों का हवन कर शक्ति संपन्न बनाते हैं।
याग द्वारा साधी हुई अग्नि सभी प्रकार के क्लेश, कष्ट ,रोग, कलह और पाप से मुक्ति दिलाने मे समर्थ होती है। पहले किसी भी विषेश यज्ञ या हवन के लिए अखंड यज्ञ की अग्नि अनिवार्य मानी जाती थी। वर्तमान में आलस्यवश सामान्य रूप मे लोग इतना प्रयास नही करते।
याग की शक्ति ही प्राचीन काल में महर्षि यागवल्क्य को अपनी यज्ञशाला की तरंगो के द्वारा मष्तिक में शतपथ ब्राह्मण जैसी पुस्तक की रचना करने की प्रेरणा दे गया। वह याग की पवित्रता थी जो श्रीराम के जन्म का कारण बनी।
आज श्री वेदव्यास धाम में शौनक जी द्वारा स्थापित विश्व की सबसे बड़ी और प्राचीन यज्ञशाला में सामाजिक कल्याण एवम विश्व शांति के लिए निरंतर अखंड याग होते रहते हैं। करोना की महामारी के बीच भी वातावरण की शुद्धी और किटाणुओं के नाश के संकल्प के साथ यहां अखंड यज्ञ होते रहे। अखंड यज्ञ और यज्ञशाला में निरंतर होती भागवत कथाओं और सत्संगों का भागी बनने के लिए नैमिषारण्य स्थित श्री वेदव्यास धाम एक उपयुक्त स्थान है।