मंगलकारी वृक्षदान

जगह जगह मन्दिर की घण्टी, दिए की लौ, धूप बत्ती की सुगंध और मंत्रोच्चार जी हाँ यही है नैमिषारण्य की पहचान। देवताओं ने इस स्थान को धर्म की स्थापना के लिए चुना था। पृथ्वी का केंद्र कहे जाने वाले नैमिषारण्य का महत्त्व वैदिक काल से ही बना हुआ है। जिस भूमि को महान ऋषि मुनियों ने अपने तप और साधना के लिए चुना हो वह अपने आप में अलौकिक होगी। इसी महान भूमि पर वेदव्यास ने ना सिर्फ वेदों का विभाजन किया बल्कि शास्त्रों और पुराण की रचना भी की। महर्षि दधीचि के महादान का प्रत्यक्षदर्शी रहा नैमिषारण्य सतयुग का तीर्थ कहा जाता है। कहते हैं यह धरती कलयुग के कुप्रभाव से मुक्त है। जो यहाँ आता है उसे अन्य चारों तीर्थों का पुण्य फल प्राप्त हो जाता है। इस क्षेत्र को भगवान विष्णु का निवास क्षेत्र जिसे नैमिषे-अनिमिषा-क्षेत्र भी कहते हैं। ऐसा माना जाता है यहीं स्वयंभू मनु और सतरूपा ने भगवान विष्णु की तपस्या की और आशीर्वाद स्वरूप पुत्र माँगा। जिस स्थान पर तुलसीदास ने रामायण की रचना की हो, हर हिंदू के घर होने वाली सत्यनारायण कथा का प्रथम वाचन हुआ हो, वह कितनी पुण्यभूमि होगी इसका अनुमान वहाँ पहुँच कर ही लगाया जा सकता है। आइए चलें नैमिषारण्य के सफर पर और स्वयं अनुभव करें। लखनऊ से 90 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है नैमिषारण्य क्षेत्र इस। जब रहने का ठिकाना ढूंढना हो और स्थान एक तीर्थ हो तब प्रवास सात्विक होना चाहिए। ऐसे में वेदव्यास धाम एक उपयुक्त विकल्प है। सभी आधुनिक सुविधाओं से लैस किंतु बेहद सात्विक। आश्रम का अपना अपना कार्यक्रम तो रहता ही है इसके अतिरिक्त निरंतर चल रहे याग में सम्मिलित होने का सुअवसर भी मिलता है। व्यासपीठ – वेदव्यास धाम परिसर में ही व्यासगद्दी या व्यासपीठ स्थित है। 5000 वर्ष पुराना वटवृक्ष जिसके नीचे बैठकर वेदव्यास जी ने वेदों का विभाजन, पुराण की रचना की थी। पास में ही भगवान वेदव्यास का एक छोटा सा मंदिर भी है। जहाँ प्रथम बार सत्यनारायण कथा का वाचन हुआ था। इस इसके अतिरिक्त यहाँ शौनक जी की यज्ञशाला है, जहाँ निरंतर यज्ञ चलते रहते है। अपने आप में अनूठा और विश्व की सबसे बड़ी यज्ञशाला यहाँ स्थित है जिसका अष्टकोणीय हवनकुंड देखने योग्य है। और भी बहुत कुछ है श्री वेदव्यास धाम में जिसका अनुभव यहाँ आ कर ही लिया जा सकता है। श्री ललिता देवी मंदिर – कहते हैं जब माता सती ने आत्मदाह कर लिया तब शिव जी ने माता की दग्ध देह को उठा तांडव नृत्य करना शुरू किया। जिसके कारण माता की देह 108 भागों में अनेक स्थानों पर गिरी। नैमिषारण्य में माता का हृदय गिरा और वहीं पर श्री ललिता देवी पीठ की स्थापना हुई। यह भारत के शक्तिपीठों में एक माना जाता है। स्वयंभू मनु और सतरूपा- पुत्रप्राप्ति की कामना लिए वर्षों तक स्वयंभू मनु और सतरूपा ने 23000 वर्षों तक भगवान विष्णु की तपस्या की। यह एक दर्शनीय स्थान है। दधीची कुंड – वृतासुर के आतंक से मुक्ति हेतु देवराज इन्द्र ने महर्षि दधीचि से उनकी अस्थियों का दान मांगा। महर्षि सहर्ष तैयार हो गए किंतु, उन्होंने देह त्यागने से पूर्व सभी पवित्र नदियों में स्नान की इच्छा जताई। देवराज इंद्र ने समय बचाने के लिए सभी नदियों को निर्देश दिया कि वे नैमिषारण्य में स्थापित हो जाये। इसके पश्चात् महर्षि ने स्नान किया ओर अपनी देह त्याग दी। नैमिषारण्य से 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित मिश्रिख में अत्यधिक सुन्दर कुण्ड है और कुण्ड के निकट महर्षि दधीचि का मंदिर है। यहाँ दूर दूर से लोग स्नान करने आते हैं। चक्रतीर्थ – कहते हैं ब्रह्मा जी के चक्र के यहाँ गिरने के कारण एक चक्रनुमा गोलाकार कुंड बन गया। कुंड के अंदर और बाहर दोनों तरफ पानी भरा रहता है लोग यहाँ स्नान करने दूर दूर से आते हैं। ऐसी मान्यता है यहाँ स्नान करने से सभी पाप नष्ट होते हैं। चक्रतीर्थ के पास अनेक मंदिर स्थित है । जिनमें श्री बद्रीनारायण धाम, श्री राधा बिहारी मंदिर , श्री सत्य नारायण मंदिर , श्री श्रृंगी ऋषि तपस्थान आदि मंदिर है । यह दर्शन योग्य जगह है। बाबा भूतेश्वरनाथ- बाबा भुतेश्वरनाथ अति प्राचीन शिवमंदिर है ऐसी मान्यता की ये नैमिषारण्य के 33 करोड़ देवी देवताओ और 88 हजार ऋषियों के रक्षक है।चक्रतीर्थ परिसर में बने इस प्राचीन बाबा भूतेश्वर नाथ महादेव मंदिर में सुबह और शाम को भव्य आरती होती है। श्री देव देवेश्वर मंदिर- इस इस मंदिर का वर्णन वायु पुराण में मिलता है । नैमिषारण्य में सभी शिवालयों में यह सबसे प्रमुख और प्राचीन शिव लिंग है। दूर दूर से लोग यहाँ दर्शन करने आते हैं। देवपुरी- एक ही स्थान पर 108 हिंदू देवी देवताओं को देखना अपने आप में एक अनूठा अनुभव है अनूठा अनुभव है। यदि ऐसा ही कुछ अनुभव करना है एक बार देवपुरी मंदिर अवश्य आए। और भी बहुत कुछ है नैमिषारण्य में। अपनी महान गौरवशाली धरोहरो से साक्षात्कार करना हो तो नैमिषारण्य अवश्य आएं।