आज के समय में जब आवश्यकताएं और आकांक्षाएं तेजी से बदल रही हैं , तो इसके कुप्रभाव से युवा भी अछूता नही रह गया है। आज आधुनिक जीवन के अनेक संघर्ष लोग सह नहीं पा रहे, कमज़ोर अंतर्मन से हार आज अनेक युवा पथभ्रष्ट हो रहें है। ऐसे में परिवारों का भी दायित्व है कि अपने बच्चों में धर्म के संमार्ग का पथ प्रदर्शित करें। सत्संग से न केवल कठिनाई में भी डटे रहने का सामर्थ्य आता है, बल्कि धर्म कुमार्ग पर जाने से भी रक्षण करता है। मानव जीवन के प्रत्येक चरण में धर्म की महत्वपूर्ण भूमिका है। मनुष्य को मानव बनाने का सामर्थ्य केवल धर्म में है।
मोबाइल से चिपका युवा भागवत कथा का श्रवण करे, ज्ञानी जनों को सुने, अपने तर्क करे , प्रश्न करें।
इससे मस्तिष्क और मन दोनो के द्वार खुलेगें। श्री वेदव्यास धाम के पीठाधीश श्रद्धेय अनिल शास्त्री जी के अनुसार धर्म युवा पीढ़ी को नैतिक, अनुशासित और सामाजिक बनाने में मदद करता है। आज का युवा नीति नही बनाता, संतोष का अति आभाव है।
“यतो ऽभ्युदयनिःश्रेयससिद्धिः स धर्मः।
धर्म जीवन को अनुशासित करता है, यह लौकिक उन्नति तथा आध्यात्मिक विद्या दोनों की प्राप्ति कराता है। सनातन धर्म में जीवन को धारण करने, समझने और परिष्कृत करने की एक समग्र विधि है।
“सर्वेभवन्तु सुखिन: सर्वे सन्तु निरामया: ।
सर्वेभद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दु:खभाग भवेत् ।।”
याग, ध्यान और भागवत में युवाओं में हो रहे अवसाद जैसे विकारो को दूर करने की शक्ति है।