व्यासपीठ: भगवान वेद व्यास को नमन

व्यासपीठ: भगवान वेद व्यास को नमन

सनातन अर्थात जो सदैव से हो और वेद सनातन धर्म का आधार हैं। ऐसी मान्यता है की वेदों का उद्भव सृष्टि के साथ ही हुआ। आरंभ मे एक ही वेद था। किंतु द्वापर युग में महर्षि कृष्ण द्वैपायन जी ने वेद का विभाजन कर चार भाग ऋग्वेद, यजुर्वेद ,सामवेद और अथर्ववेद में विभक्त कर दिया। वेद का विभाजन करने के कारण ही इनका नाम वेदव्यास पड़ा। वेदव्यास जी बाल्यकाल से ही वेद में पारंगत हो गए थे। उनकी विद्वता से को देख ही उन्हे वेद की जटिलता को जन सुलभ बनाने का भार दिया गया। ऐसा भी कहा जाता है की स्वयं श्री गणेश ने वेद को लिपिबद्ध करने में सहायता की थी। नैमिषारण्य में स्थित व्यासपीठ वह स्थान है जहाँ वेदव्यास जी ने वेद को चारों वेदों में संकलित किया। इसी स्थान पर उन्होंने 18 पुराणों और महाभारत की भी रचना की। व्यास गद्दी या व्यासपीठ अत्यन्त प्राचीन बरगद के पेड़ के नीचे स्थित है। कहते हैं यह विशालकाय वटवृक्ष 5000 वर्षों से इन महान उपलक्ष्यों का साक्षी बन खड़ा है। इसी वटवृक्ष के सानिध्य में बैठ कर वेदव्यास जी ने वेद, शास्त्रों और पुराणों का वर्णन किया। महाभारत के समय का यह वटवॄक्ष व्यास गद्दी अथवा व्यासपीठ के नाम से विख्यात है। व्यासपीठ नैमिषारण्य के गुलदस्ते का सबसे सुन्दर फूल है। यहां वेदव्यास जी का छोटा सा मंदिर है। मंदिर के अंदर कपड़ों को त्रिकोण के रूप में रखा गया है कहते है श्री सत्यनारायण व्रत कथा पहली बार व्यास जी ने यहीं सुनाई थी। इसी परिसर में 88000 ऋषि-मुनि ने यज्ञ किया था। यहाँ बहुत बड़ा हवन कुंड भी है जो अष्टकोंणीय है। व्यास गद्दी पर विराजमान हो बरगद के पेड़ के नीचे वेदव्यास जी ने अपने शिष्य जैमिनी जी को सामवेद सुनाया था। व्यासपीठ के पास ही बारह ज्योतिर्लिंगों वाला शिव मंदिर भी है। व्यासगद्दी का दर्शन सतयुग से समीपता का अनुभव कराता है। यहाँ जाना अपनी जड़ों का सानिध्य पाने जैसा है। अतः जब भी नैमिषारण्य आएं व्यासपीठ अवश्य जाएं ताकी उस महान विभूति को नमन कर सकें जिसने हमें वेदों , पुराणों और शास्त्रों का उपहार दिया।