“दान सदैव सुपात्र: वक्ता दशसहस्त्रेषु दाता भवति वा न वा। “
समय को अपने बचपन में ले जाइए तो आप पाएंगे हर त्योहार या नहान पर सुबह स्नान आदि कर अन्न और द्रव्य का दान किया जाता था। लेकिन आज दान केवल पैसे तक सिमट कर रह गया है।सनातन धर्म में दान बहुत महत्व है।
विद्या, भूमि, कन्या, गौ और अन्न दान इन पांच दानों का बहुत महत्व है। सामान्यतः दान इश्वर की आराधना का सबसे आसान और उत्तम उपाय माना जाता है। वेदों के अनुसार धर्म की उन्नति, सत्य एवं विद्या के लिए दिया जाने वाला दान सबसे उत्तम है। इसी प्रकार पुराणों में भी अन्नदान, वस्त्रदान,
विद्यादान, अभयदान और धनदान को श्रेष्ठ माना गया है।
हस्तस्य भूषणं दानं सत्यं कण्ठस्य भूषणम् ।
श्रोत्रस्य भूषणं शास्त्रं भूषणैः किं प्रयोजनम्।
नैमिषारण्य स्थित श्री वेदव्यास धाम के प्रमुख कार्यकारी श्री रंजीत शास्त्री जी का कहना है की मोह माया में फंसे व्यक्ति के लिए मोह त्यागने की शुरुआत दान और क्षमा से ही होती है। दानशील व्यक्ति निःस्वार्थ दान से अपना लोक परलोक दोनो संवार लेता है। वे आगे कहते हैं कि श्री वेदव्यास धाम प्रतिवर्ष हजारों निर्धन कन्याओं के विवाह की व्यवस्था करता है। नैमिषारण्य में गऊ दान को बहुत पुण्य का काम समझा जाता है । अतः गौशाला के जरिए यहाँ गौधन का पालन-पोषण एवं रक्षण किया जाता है। किसी भूखे का पेट भरने से बड़ा कोई पुण्य नहीं होता है इसलिए ज़रूरतमंद को अन्नदान जैसे अनेक धर्मार्थ कार्यों का निष्पादन यहाँ किया जाता है।इसके अतिरिक्त वृक्ष दान, प्यासे को पानी , निर्धन बच्चों की शिक्षा आदि अनेक कार्य में श्री वेदव्यास धाम बढ़ चढ़कर भाग लेता है।
दानेन प्राप्यते स्वर्गो दानेन सुखमश्नुते ।
इहामुत्र च दानेन पूज्यो भवति मानवः।
नैमिषारण्य श्रेत्र में दान करने से व्यक्ति को परम कल्याण की प्राप्ती होती है।”