श्री हिरगोविन्द जी और श्रीमती उमरदेवी ने वेदव्यास गद्दी की धार्मिक विरासत को संजोकर रखा। व्यास गद्दी, नैमिषारण्य में 1963 में सावन की अष्टमी को इनके घर पुत्र का जन्म हुआ और नाम रखा गया अनिल। बालक अनिल की शिक्षा-दीक्षा श्री वेदव्यास संस्कृत महाविद्यालय नैमिषारण्य में हुई।
श्री व्यास पीठाधीश अनिल शास्त्री जी बाल्यकाल से ही अत्यंत मेधावी थे। मात्र 13 वर्ष की अल्पायु में वाराणसी में श्रीमद् भागवत का पाठ किया। इसके बाद नैमिषारण्य एवं श्री भागवत के प्रचार - प्रसार के संकल्प के साथ बालक अनिल शास्त्री जी ने देश के विभिन्न राज्यों की यात्रा की। स्वयंसिद्ध श्री शास्त्री जी ने देश-विदेश में जनसाधारण को सनातन संस्कृति और नैमिषारण्य से परिचित कराया। भारतीय संस्कृति के प्रसरण और नैमिषारण्य के विकास के लिए शास्त्री जी कृतसंकल्प तथा सतत प्रयासरत रहें हैं।
शास्त्री जी "अयं यज्ञो विश्वस्य भुवनस्य नाभिः" में आस्था रखतें हैं। श्री भागवत कथा, दान और याग के पुण्य को जन सुलभ बनाने के लिए श्री व्यासपीठाधीश अनिल कुमार शास्त्री जी एवं उनकी धर्मपत्नी श्रीमती सरोज देवी आदि गंगा गोमती नदी के पूर्वीतट के अरण्य के बीच जहां प्राचीन काल में महर्षि शौनक का आश्रम हुआ करता था, उसी पवित्र भूमि पर "श्री वेदव्यास धाम " की आधारशिला रखी। श्री वेदव्यास धाम की स्थापना 2007 में 88 हजार श्रीमद् भागवत पारायण महायाग करके की गई। "सर्वे भवन्तु सुखिनः सन्तु" के मंत्र को शिरोधार्य कर श्री वेदव्यास पीठाधीश अनिल कुमार शास्त्री जी जन कल्याण हेतु 1993 से अब तक अनवरत महायाग करा रहे हैं।
2007 में पूजनीय शास्त्री जी ने जब नैमिषारण्य की धरती पर 1अरब, 87 करोड़ , 28 लाख, 49 हजार वर्षों बाद पितरों के मोक्ष हेतु 88 हजार श्रीमदभागवत पारायण महायाग का संकल्प और तत्पश्चात याग संपादित किया, तब लोगों को अपार अचरज हुआ। इस महायाग में बड़ी संख्या में देश-विदेश से साधु-संत और भक्त शामिल हुए थे।
गीता में श्रीकृष्ण याग ने विषय में कहा है
सहयज्ञाः प्रजाः सृष्टा पुरोवाच प्रजापतिः।
अनेन प्रसविष्यध्वमेष वोडस्त्विष्ट कामधुक्॥
वैदिक काल से प्रचलित याग की प्राचीन परम्परा को श्री वेदव्यास धाम और विश्व की सबसे बड़ी यज्ञशाला का निर्माण करा कर परम पूज्य अनिल शास्त्री जी ने समाज को अनुपम भेंट दी है।कहा जाता है ऋषियों मुनियों द्वारा निर्मित, यह 10 हजार वर्ष पुरानी यज्ञशाला थी, जिसका श्री वेदव्यास धाम के पीठाधीश श्री अनिल कुमार शास्त्री जी नें मुम्बईवासी श्री विशाल सुखानी एवम परिवार की सहायता से भव्य रूप में पुनःनिर्माण कराया। श्रद्धेय श्री अनिल शास्त्री का उद्देश्य धार्मिक विरासत के लाभ समाज तक पहुँचाने के साथ-साथ समाज को स्वास्थय, शिक्षा और ज्ञान (आध्यात्मिक) के महत्व से अवगत कराना भी है। मानव कल्याण और "वसुधैव कुटुंबकम " की अवधारणा के पोषक श्री वेदव्यास पीठाधीश अनिल कुमार शास्त्री जी मानवीय कल्याण के यज्ञ में अपने ज्ञान और संकल्प से सिद्धी प्राप्त करेंगे।
श्री रंजीत कुमार शास्त्री जी
श्री वेदव्यास धाम के एक प्रमुख स्तम्भ श्री रंजीत कुमार शास्त्री जी, श्री वेदव्यास पीठाधीश अनिल कुमार शास्त्री के मुख्य प्रतिनिधि भी हैं और ज्येष्ठ पुत्र भी। आप पिता के कर्त्तव्य पथ के सारथी भी हैं और श्री वेदव्यास धाम के प्रमुख कर्ता-धर्ता में से एक भी।